In the beginning of the creation, the creator Brahma created beings along with sacrifice and said, “By sacrifice you propagate and grow; let such sacrifice be your wish-fulfilling cow of plenty.”
Yagyakarma is considered of great significance in the Eternal Culture. The mythological treatise have immenselyglorified the yagya and have meticulously explained the merit one avails by performing one. The Gods, the sages, the prominent religious teachers, and the scholars of Vedas and Scriptural dictum have been performing yagya since ancient times. The scriptural texts have defined yagya as a vital substance of any existence. It further says that yagya not only purifies the environment but rehabilitates the mind and soul of the human beings. Hence, the intellects have given a portrayal of numerous yagyas in the Vedic literature. A yagya is not a mere scriptural statement, but it is also an art of living a virtuous life.
यज्ञ ही कर्म है, यज्ञ ही जीवन का सार है
सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति: ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्तिष्टकामधुक् ।।
प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो जाओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो।
सनातन संस्कृति में यज्ञकर्म का विशेष महत्व माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में यज्ञ का काफी महिमामंडन किया गया है और इससे होने वाले लाभ के संबंध में विस्तारपूर्वक बतलाया गया है। प्राचीन काल से देवता, ऋषि-मुनि, आचार्य, वेदों और शास्त्रोक्त ग्रंथों के ज्ञाता यज्ञकर्म करते चले आ रहे हैं। शास्त्रों में यज्ञ को जीवन का अहम अंग बतलाया है और कहा है कि इससे वातावरण के पवित्र होने के साथ मानव मन के मन और मस्तिष्क की भी शुद्धि होती है। इसलिए हमारे मनीषियों ने कई प्रकार के यज्ञों का वेद-शास्त्रों में वर्णन किया है। यज्ञ मात्र शास्त्रोक्त विधान नहीं है, बल्कि मानव के जीवन का अहम हिस्सा होने के साथ जीवन को सात्विक रूप से और सद्भावना के साथ जीने की कला है। पौराणिक शास्त्रों में यज्ञ को काफी विस्तारपूर्ज्ञवक समझाया गया है।
Recent Comments